Saturday, January 29, 2011

इश्क में होश नहीं है

इश्क में होश नहीं है
की कहाँ पे हूँ मैं
या तो है चाँद जमीन पे
या आसमान में हूँ मैं
इश्क में होश नहीं है

मुझको मालुम नहीं दिन कब निकलता है
मुझको मालुम नहीं रात कैसे ढलती है
ये सुबह शाम है क्या कुछ पता ही नहीं
ज़िन्दगी ख्वाबो में निकलती है
मुझको छुते हैं सितारे ये किस जगह पे हूँ मैं
या तो है चाँद जमीन पे
या आसमान में हूँ मैं

दिल किसी दर्द किसी ग़म से वाकिफ ही नहीं
मैं शिकायत भी करूँ तो ये वाजिब ही नहीं
मैं जहाँ हूँ बस वही मंजिल
माना किसी शर्त पे वापिस ही नहीं
ज़र्रे ज़र्रे में इश्क है हाँ उस जहां में हूँ मैं
या तो है चाँद जमीन पे
या आसमान में हूँ मैं
इश्क में होश नहीं है
की कहाँ पे हूँ मैं.......................

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